"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है!
"वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते!
"भक्ति ना ही आँखो से होती है!
"वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते!
"ना ही भक्ति बोलने सुनने से होती है!
"वर्ना "गूँगे" "बहरे" कभी नहीं कर पाते!
"ना ही "भक्ति" धन और ताकत से होती हैं!
"वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते!
"भक्ति" केवल भाव से होती है!
"एक अहसास है "भक्ति"
"जो हृदय से होकर विचारों में आती है!
"और हमारी आत्मा से जुड़ जाती है!
"भक्ति" भाव का सच्चा सागर है!