आसन:
आसन बैठने के लिए उपयोग होता है।
आसन बिछाने से छोटे जीव आदि अपने शरीर पर नही चढते पास से निकल जाते है
आसन सफ़ेद रंग का उत्तम माना गया है
आसन चर पर करने वाला न हो। जिस प्रकार अधिकारी कुर्सी पर बैठ कर अपनी ड्यूटी करता है उसी प्रकार आसन पर बैठ कर साधक अपनी आत्मा को गुरु भगवंत अरिहन्त भक्ति में लगता है
पूंजणी
श्रावक की पुँजनी 14 राजू लोक का आभास करती है। इससे सुक्ष्म जीव की रक्षा होती है
जिस प्रकार पूंजनी को खोल कर पलेवन किया जाता है यह सन्देश देती है की जीव को भी दिन में एक बार अपनी आत्मा पर लगी कर्मरज को आत्मा से वोसिरा दे ताकि आत्मा पर अनावश्यक कालिमा न लगे यह ऊन आदि कोमल चीजो से बनी हुई होती है। चीटी आदि सूक्ष्म जीवो की यतना के लिए पूंजनी का पर्योग किया जाता है। श्रावक की पूंजनी बडी तथा श्राविकाकी छोटी होती है। सामायिक करते समय पूंजनी हमेशा साथ मे रखनी चाहिए।
मुहपत्ति:
मुहपत्ति से वायुकाय के जीवो की हिंसा नही होती।पुस्तक पर मुह के छीटे नही पड़ते।
मुहपत्ति 16 अंगुल चौड़ी और 21 अंगुल लंबी होनी चाहिये उसे लम्बाई की और से डबल करे उसे फिर मोडने पर चार पट्ट होंगे फिर मोड़ने पर 8 पट्ट होंगे फिर बीच में धागा लगाकर मुह पर लगाये। यह अहिंसा का प्रतीक है यह जैन धर्म की विशेष निशानी है।
माला:
मंत्र का जाप अनुष्ठान करने के काम आती है। इसमे 108 मणि होते है। क्योंकि पंच परमेष्ठि के 108 गुण होते हैं। मन की शांति के लिऐ माला फेरते है।