तपती धरती पर उन पंचमहाव्रतधारी पुण्यात्माओं के विहार की विवेचना करती कुछ पंक्तियाँ...
जब ऐसी भीषण गर्मी में
लोहा तक पिघल जाता है,
चार कदम भी तब कोई
इंसान ना चल पाता है,
जिनशासन की ज्योत जलाने
अंधकार के सागर में,
साधु व साध्वीयों का देखो
टोला निकल जाता है...।
महावीर की वाणी
जन जन तक पहुंचाने को,
धर्माराधना साधना व
उपासना करवाने को,
सोते हुए संघ श्रावक में
धर्म ध्वजा फहराने को,
साधु व साध्वियों का देखो
टोला निकल जाता है...।
प्रभु अरिहंत की संसार में
जाहोजलाली बढ़ाने को,
श्री संघ में समरसता व
एकजुटता लाने को,
साधु व साध्वियों का देखो
टोला निकल जाता है...।
पार करते हैं निरंतर
उबड़-खाबड़ रास्तों को,
नंगे पैर आगे बढ़ जाते
ना देखें अपने छालो को,
कंकर पत्थर की चुभन और
सिर पर सूरज चढ़ जाता है,
साधु व साध्वियों का देखो
टोला निकल जाता है...।
इतने इतने कष्ट उठाते
वो उफ्फ तक नहीं करते हैं,
त्याग तपस्या आत्मशुद्धि
अपने ह्रदय में धरते हैं,
ऐसी चारित्र आत्माओं से
सिर अपना ऊंचा हो जाता है,
साधु व साध्वियों का देखो
टोला निकल जाता है...।
जिनशासन को दीपायमान करती ऐसी चारित्र आत्माओं के चरणों में शत् शत् नमन।।